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गांव का सरस्वती पूजा !

meri soch
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कुछ दिन पहले सरस्वती पूजा थी तो अपना बिता हुआ कल याद आया .
हमलोग भी सरस्वती पूजा का आयोजन करते थे उसके हेड मेरे अप्पू भैया होते थे मकरसंक्रांति से ही हमलोग पूजा की तैयारी करते थे
बास का बैरियर लगा के सक्रांति मेला जाने वालो से चंदा लेना .लोग भी कमाल के होते थे . 1 रुपया चंदा देते थे और सवाल 100 रुपया वाला पूछते थे .खैर जो भी हो मज़ा आता था .एक बार मेन रोड रघुनाथपुर – मुरारपटी पे बास का बैरियर लगा दिया हमलोगों ने .मैं और मेरे अप्पू भैया घर आ गए थे तब तक रघुनाथपुर पुलिस की गाड़ी आ गयी ,सारे बच्चे गाड़ी पे चढ़ गए की चंदा दो फिर जब देखा की अंदर पुलिस बैठी है तो सब लड़के भागने लगे .सारे भाग गए लेकिन एक लड़का पकड़ा गया .हमलोगों का दोस्त रामजीत शाह .पुलिस उसको रघुनाथपुर ले गयी और साम को छोड़ दिया हिदाययत देते हुए की आइंदा ऐसा नहीं होना चाहिए .
हमलोगों के बगल मे एक श्री मदन बिहारी वर्मा थे वो कमाल के कलाकार थे मूर्ति खुद ही बना लेते थे .एक दो बार तो हमलोग भी उनसे ही ख़रीदे थे .
उस समय हमलोगों का पूजा का बजट ३०० -४०० रुपया होता था और सारे लड़के पूजा का जम कर लुफ्त उठाते थे .मूर्ति का बिसर्जन म तो और मज़ा आता था वो सायकिल की पीछे कैरियर पर कुर्सी उसके ऊपर मूर्ति रखी जाती और हमलोग नरहन घाट तक जाते .
आज कल तो ट्रेक्टर उसपे डीजे और क्या क्या खैर .खुशि छोटी छोटी चीजो म जो मिलती है वो इतना सफल (दुसरो की नज़र में) होने के बाद भी कभी अहसास नहीं हुआ .

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